Meer

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Meer

Number of Pages : 294
Published In : 2014
Available In : Hardbound
ISBN : 9789326352598
Author: Ramnath 'Suman'

Overview

"मीर उर्दू-काव्य से मीर को निकाल दीजिए तो जैसे गंगा को हिन्दुस्तान से निकाल दिया! मीर में अनुभूति की गहराइयाँ तड़पती हैं, वहाँ दिल का दामन आँसुओं से तर है। मीर में एक अजब-सी $खुद$फरामोशी है, एक बाँकपन, एक अकड़, एक $फ$कीरी तथा ज़बान की वह घुलावट है, जो किसी दूसरे को नसीब नही हुई। बिना डूूबे मीर को पाना मुश्किल है। 'सहल है मीर को समझना क्या, हर सु$खन उसका एक मुकाम से है’। सर्वांगीण समीक्षा के साथ इस पुस्तक में मीर नज़दीक से व्यक्त हुए हैं। सुमनजी लगभग चालीस वर्षों तक उर्दू-काव्य के गहन अध्येता रहे। उनमें गहरी पकड़ थी, वह कवि के मानस में उतरते थे। मीर के इस अध्ययन को, जो सुमनजी की पैनी दृष्टि से गुज़रकर आया है, पढ़कर आपको मीर के सम्बन्ध में उर्दू में कुछ पढऩे को नहीं रह जाता, क्योंकि इसमें मीर पर हुए सम्पूर्ण अद्यतन श्रम का समावेश है। प्रस्तुत है पुस्तक का नया संस्करण। "

Price     Rs 400/-

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"मीर उर्दू-काव्य से मीर को निकाल दीजिए तो जैसे गंगा को हिन्दुस्तान से निकाल दिया! मीर में अनुभूति की गहराइयाँ तड़पती हैं, वहाँ दिल का दामन आँसुओं से तर है। मीर में एक अजब-सी $खुद$फरामोशी है, एक बाँकपन, एक अकड़, एक $फ$कीरी तथा ज़बान की वह घुलावट है, जो किसी दूसरे को नसीब नही हुई। बिना डूूबे मीर को पाना मुश्किल है। 'सहल है मीर को समझना क्या, हर सु$खन उसका एक मुकाम से है’। सर्वांगीण समीक्षा के साथ इस पुस्तक में मीर नज़दीक से व्यक्त हुए हैं। सुमनजी लगभग चालीस वर्षों तक उर्दू-काव्य के गहन अध्येता रहे। उनमें गहरी पकड़ थी, वह कवि के मानस में उतरते थे। मीर के इस अध्ययन को, जो सुमनजी की पैनी दृष्टि से गुज़रकर आया है, पढ़कर आपको मीर के सम्बन्ध में उर्दू में कुछ पढऩे को नहीं रह जाता, क्योंकि इसमें मीर पर हुए सम्पूर्ण अद्यतन श्रम का समावेश है। प्रस्तुत है पुस्तक का नया संस्करण। "
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