Thane Ke Nagade

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Thane Ke Nagade

Number of Pages : 104
Published In : 2017
Available In : Hardbound
ISBN : 978-93-263-5568-1
Author: Ramakant Srivastava

Overview

रमाकान्त श्रीवास्तव की कहानियों को पढऩा एक सुलझे हुए जानकार आत्मीय के साथ आसपास की घटनाओं, स्थितियों और व्यक्तियों को समझना है। रमाकान्त श्रीवास्तव को जीवन आचरण के सौन्दर्य की गहरी पहचान है। उनके पास संगीत एवं कलाओं के सौन्दर्य बोध के संस्कार ही नहीं, वे घटनाओं और व्यक्तियों को देखने की अन्तर्भेदी दृष्टि भी रखते हैं। वे घटना खंडों, चेष्टाओं को परस्पर मिलाकर प्रवृत्तियों, चरित्रों का संधान करते हैं और उसे नाटकीयता में साक्षात कर सकते हैं। वे उन प्रगतिशील रचनाकारों में से नहीं हैं जो सैद्धान्तिक समीकरणों को लेखन में उतारने को इतने आतुर होते हैं कि रचनाएँ इकहरी हो जाती । रमाकान्त एक घटना-स्थिति को अगली घटना स्थिति से स्वाभाविक ढंग से सटाते हैं। इससे कहानी की गति स्वतन्त्र होकर आगे बढ़ती है। रचना छोटे-छोटे विवरण, चित्रण खंडों (डिटेल्स) का पुंज होती है। इन विवरण चित्रण-खंडों में दरार नहीं होती। वे एक अखंड, समूची वस्तु लगते हैं। इसके लिए लाजि़म है कि हर आगामी विवरण-चित्र या वक्तव्य पूर्ववर्ती का परिणाम लगे। रचना में गति स्थितियों के द्वन्द्व से हो। रमाकान्त श्रीवास्तव का जीवन पर्यवेक्षण स्पृहणीय है। वे इस विषय में अमरकान्त और हृदयेश के सहचर हैं जो प्रभावशाली क्लोज अप दे सकते हैं। रमाकान्त श्रीवास्तव के शिल्प में व्यंग्य-विनोद प्राय: सर्वत्र विद्यमान है। ऐसा व्यंग्य समझ का ही एक तेवर है।

Price     Rs 170/-

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रमाकान्त श्रीवास्तव की कहानियों को पढऩा एक सुलझे हुए जानकार आत्मीय के साथ आसपास की घटनाओं, स्थितियों और व्यक्तियों को समझना है। रमाकान्त श्रीवास्तव को जीवन आचरण के सौन्दर्य की गहरी पहचान है। उनके पास संगीत एवं कलाओं के सौन्दर्य बोध के संस्कार ही नहीं, वे घटनाओं और व्यक्तियों को देखने की अन्तर्भेदी दृष्टि भी रखते हैं। वे घटना खंडों, चेष्टाओं को परस्पर मिलाकर प्रवृत्तियों, चरित्रों का संधान करते हैं और उसे नाटकीयता में साक्षात कर सकते हैं। वे उन प्रगतिशील रचनाकारों में से नहीं हैं जो सैद्धान्तिक समीकरणों को लेखन में उतारने को इतने आतुर होते हैं कि रचनाएँ इकहरी हो जाती । रमाकान्त एक घटना-स्थिति को अगली घटना स्थिति से स्वाभाविक ढंग से सटाते हैं। इससे कहानी की गति स्वतन्त्र होकर आगे बढ़ती है। रचना छोटे-छोटे विवरण, चित्रण खंडों (डिटेल्स) का पुंज होती है। इन विवरण चित्रण-खंडों में दरार नहीं होती। वे एक अखंड, समूची वस्तु लगते हैं। इसके लिए लाजि़म है कि हर आगामी विवरण-चित्र या वक्तव्य पूर्ववर्ती का परिणाम लगे। रचना में गति स्थितियों के द्वन्द्व से हो। रमाकान्त श्रीवास्तव का जीवन पर्यवेक्षण स्पृहणीय है। वे इस विषय में अमरकान्त और हृदयेश के सहचर हैं जो प्रभावशाली क्लोज अप दे सकते हैं। रमाकान्त श्रीवास्तव के शिल्प में व्यंग्य-विनोद प्राय: सर्वत्र विद्यमान है। ऐसा व्यंग्य समझ का ही एक तेवर है।
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