Tang Galiyon Se Bhi Dikhata Hai Akash

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Tang Galiyon Se Bhi Dikhata Hai Akash

Number of Pages : 184
Published In : 2018
Available In : Hardbound
ISBN : 978-81-936555-0-4
Author: Yadvendra

Overview

करीब दो दशक पहले यादवेन्द्र जी से परिचय विज्ञान लेखक के रूप में हुआ था और इस रूप में भी मैं उनका मुरीद था। फिर पिछले कुछ वर्षों से उनके एक नये रूप में परिचय हुआ-विश्व के कथाकारों के एक श्रेष्ठ अनुवादक के रूप में और यह भी उससे कम सुखद नहीं है। हिंदी में विदेशी रचनात्मक कथा-साहित्य के चन्द बेहतरीन अनुवादकों में वह एक ह़ैं, जिनकी एक ही महत्वाकांक्षा रही है कि आज दुनियाभर के विभिन्न तरह के बहुस्तरीय संघर्षों के बीच जो भी लेखक अपना श्रेष्ठतम दे रहे हैं, उन्हें हिन्दी में सामने लाया जाए। यह काम आसान नहीं है।यह केवल कुछ चर्चित और बड़े कथाकारों की कुछ रचनाओं को सामने लाने तक सीमित नहीं है क्योंकि अनुवाद करना तो बाद की बात है,पहला काम जो आज लिखा जा रहा है,उसे पढक़र-समझना और फिर उसे चुनौती मानकर सामने लाना है, खोजने की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेना है। जो  विश्वस्तर पर मशहूर कवि-लेखक हैं, उन्हीं की रचनाएँ अनुवाद करने में अनुवाद करने की भी चुनौती है और कोई खतरा भी नहीं है। लेकिन यादवेन्द्र दुनिया के उन इलाकों से कथाकारों को चुनते हैं, जो हमारी निगाह से अक्सर दूर रहते हैं मगर जिन्होंने अपना बेहतरीन कृतित्व दिया है, जो आज की संघर्षशील मनुष्यता के साथ खड़े हैं। उन्हीं में से कुछ रचनाओं का यह संग्रह है—तंग गलियों से भी दिखता है आकाश। इसमें उन्होंने दुनिया के विभिन्न देशों की करीब ऐसी दो दर्जन महिला कथाकारों की ऐसी कहानियों का अनुवाद किया है, जो लगभग दुनिया के सारे महाद्वीपों की बात कहती हैं। शायद इस तरह का हिन्दी में यह पहला प्रयत्न है। विभिन्न देशों की ये महिला कथाकार उथल-पुथल भरी किन-किन नई परिस्थितियों से गुजर कर नयी दृष्टि के साथ दुनिया की अत्यंत मार्मिक तस्वीर सामने रख रही हैं, यह संकलन उन कहानियों का एक अनोखा गुलदस्ता है। यह एक तरह से हिन्दी के तमाम कथाकारों के लिए एक जरूरी किताब  है। इन  महिला कथाकारों ने दुनिया को जितने ही रूपों में देखा और दिखाया है यह एक तरह से समकालीन दुनिया का दस्तावेज बन गया है। यादवेन्द्र जैसे समर्पित अनुवादक न होते तो दुनिया हमारे लिए कई अर्थों में अगम्य बनी रहती। विज्ञान और साहित्य का मेल किस तरह व्यापक मानवीय संवेदना को उकेर सकता है, हमारी संवेदना को परिकृत कर सकता है यह संग्रह उसका उदाहरण है।  यादवेंद्र उन अनुवादकों में नहीं है, जो विदेशी दूतावासों की नजर में आकर विदेश यात्रा के जुगाड़ में अनुवाद किया करते हैं। उन्होंने आज तक साहित्य के एक अच्छे कार्यकर्ता की तरह ही दुनिया को हमारे सामने रखा है। उन्होंने जटिलतम मानवीय सम्बन्धों पर लिखी गई उत्कृष्ट कहानियाँ हमें दी हैं, जिनमें चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना के बहाने लिखी वह कहानी भी है जो एक व्यक्ति का एक तरह से सच्चा मार्मिक बयान है। यह कहानी उस व्यक्ति की है, जो चेर्नोबिल दुर्घटना के बाद सरकारी तौर पर सख्त मनाही के बावजूद अपने साथ घर का दरवाजा उखाड़ कर ले जाता है। उस घर की यह परम्परा रही है कि उसके किसी व्यक्तिकी मृत्यु होने पर उसे तब तक उसी किवाड़ पर लिटाया जाता है, जब तक कि उसके लिए ताबूत बनकर नहीं आ जाता। विडम्बना देखिए कि उसे अपनी 6 साल की बेटी को—जो चेर्नोबिल के हादसे का शिकार होती है—उसे ही दरवाजे पर लिटाकर जीवन से विदा करना पड़ता है। ऐसी न जाने कितनी कहानियों इस संग्रह में हैं,जो मनुष्य की जीने की प्रबल इच्छाशक्ति को दर्शाती हैं। इसाबेला एलेंदे की कहानी भी ज्वालामुखी फटने और बर्फ के पहाड़ पिघलकर धँसने के कारण एक बच्ची और इस दुर्घटना को कवर करने गए एक पत्रकार के मानवीय साहस की एक अनुपम और विश्वसनीय कहानी है। ये सिर्फ कहानियाँ नहीं हैं बल्कि एक स्तर पर कविताएँ हैं। इन्हें पढऩा एक साथ कहानी और कविता दोनों पढऩा है और यह सुख बहुत कम रचनाओं के जरिए हम तक पहुँच पाता है।विष्णु नागर

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करीब दो दशक पहले यादवेन्द्र जी से परिचय विज्ञान लेखक के रूप में हुआ था और इस रूप में भी मैं उनका मुरीद था। फिर पिछले कुछ वर्षों से उनके एक नये रूप में परिचय हुआ-विश्व के कथाकारों के एक श्रेष्ठ अनुवादक के रूप में और यह भी उससे कम सुखद नहीं है। हिंदी में विदेशी रचनात्मक कथा-साहित्य के चन्द बेहतरीन अनुवादकों में वह एक ह़ैं, जिनकी एक ही महत्वाकांक्षा रही है कि आज दुनियाभर के विभिन्न तरह के बहुस्तरीय संघर्षों के बीच जो भी लेखक अपना श्रेष्ठतम दे रहे हैं, उन्हें हिन्दी में सामने लाया जाए। यह काम आसान नहीं है।यह केवल कुछ चर्चित और बड़े कथाकारों की कुछ रचनाओं को सामने लाने तक सीमित नहीं है क्योंकि अनुवाद करना तो बाद की बात है,पहला काम जो आज लिखा जा रहा है,उसे पढक़र-समझना और फिर उसे चुनौती मानकर सामने लाना है, खोजने की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेना है। जो  विश्वस्तर पर मशहूर कवि-लेखक हैं, उन्हीं की रचनाएँ अनुवाद करने में अनुवाद करने की भी चुनौती है और कोई खतरा भी नहीं है। लेकिन यादवेन्द्र दुनिया के उन इलाकों से कथाकारों को चुनते हैं, जो हमारी निगाह से अक्सर दूर रहते हैं मगर जिन्होंने अपना बेहतरीन कृतित्व दिया है, जो आज की संघर्षशील मनुष्यता के साथ खड़े हैं। उन्हीं में से कुछ रचनाओं का यह संग्रह है—तंग गलियों से भी दिखता है आकाश। इसमें उन्होंने दुनिया के विभिन्न देशों की करीब ऐसी दो दर्जन महिला कथाकारों की ऐसी कहानियों का अनुवाद किया है, जो लगभग दुनिया के सारे महाद्वीपों की बात कहती हैं। शायद इस तरह का हिन्दी में यह पहला प्रयत्न है। विभिन्न देशों की ये महिला कथाकार उथल-पुथल भरी किन-किन नई परिस्थितियों से गुजर कर नयी दृष्टि के साथ दुनिया की अत्यंत मार्मिक तस्वीर सामने रख रही हैं, यह संकलन उन कहानियों का एक अनोखा गुलदस्ता है। यह एक तरह से हिन्दी के तमाम कथाकारों के लिए एक जरूरी किताब  है। इन  महिला कथाकारों ने दुनिया को जितने ही रूपों में देखा और दिखाया है यह एक तरह से समकालीन दुनिया का दस्तावेज बन गया है। यादवेन्द्र जैसे समर्पित अनुवादक न होते तो दुनिया हमारे लिए कई अर्थों में अगम्य बनी रहती। विज्ञान और साहित्य का मेल किस तरह व्यापक मानवीय संवेदना को उकेर सकता है, हमारी संवेदना को परिकृत कर सकता है यह संग्रह उसका उदाहरण है।  यादवेंद्र उन अनुवादकों में नहीं है, जो विदेशी दूतावासों की नजर में आकर विदेश यात्रा के जुगाड़ में अनुवाद किया करते हैं। उन्होंने आज तक साहित्य के एक अच्छे कार्यकर्ता की तरह ही दुनिया को हमारे सामने रखा है। उन्होंने जटिलतम मानवीय सम्बन्धों पर लिखी गई उत्कृष्ट कहानियाँ हमें दी हैं, जिनमें चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना के बहाने लिखी वह कहानी भी है जो एक व्यक्ति का एक तरह से सच्चा मार्मिक बयान है। यह कहानी उस व्यक्ति की है, जो चेर्नोबिल दुर्घटना के बाद सरकारी तौर पर सख्त मनाही के बावजूद अपने साथ घर का दरवाजा उखाड़ कर ले जाता है। उस घर की यह परम्परा रही है कि उसके किसी व्यक्तिकी मृत्यु होने पर उसे तब तक उसी किवाड़ पर लिटाया जाता है, जब तक कि उसके लिए ताबूत बनकर नहीं आ जाता। विडम्बना देखिए कि उसे अपनी 6 साल की बेटी को—जो चेर्नोबिल के हादसे का शिकार होती है—उसे ही दरवाजे पर लिटाकर जीवन से विदा करना पड़ता है। ऐसी न जाने कितनी कहानियों इस संग्रह में हैं,जो मनुष्य की जीने की प्रबल इच्छाशक्ति को दर्शाती हैं। इसाबेला एलेंदे की कहानी भी ज्वालामुखी फटने और बर्फ के पहाड़ पिघलकर धँसने के कारण एक बच्ची और इस दुर्घटना को कवर करने गए एक पत्रकार के मानवीय साहस की एक अनुपम और विश्वसनीय कहानी है। ये सिर्फ कहानियाँ नहीं हैं बल्कि एक स्तर पर कविताएँ हैं। इन्हें पढऩा एक साथ कहानी और कविता दोनों पढऩा है और यह सुख बहुत कम रचनाओं के जरिए हम तक पहुँच पाता है।विष्णु नागर
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