Aadhunik Hindi Gadya Sahitya Ka Vikas Aur Vishleshan

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Aadhunik Hindi Gadya Sahitya Ka Vikas Aur Vishleshan

Number of Pages : 712
Published In : 2015
Available In : Hardbound
ISBN : 978-93-263-5247-5
Author: Vijay Mohan Singh

Overview

प्रख्यात आलोचक विजय मोहन ङ्क्षसह की पुस्तक 'आधुनिक हिन्दी गद्य साहित्य का विकास और विश्लेषण’में आधुनिकता को नए सिरे से परिभाषित और विश्लेषित करने की पहल है। काल विभाजन की पद्धति भी बदली, सटीक और बहुत वैज्ञानिक दिखलाई देगी। साहित्य के विकासात्मक विश्लेषण की भी लेखक की दृष्टि और पद्धति भिन्न है। इसीलिए हम इस पुस्तक को आलोचना की रचनात्मक प्रस्तुति कह सकते हैं। पुस्तक में आलोचना के विकास-क्रम को उसके ऊपर जाते ग्राफ से ही नहीं आंका गया है। युगपरिवर्तन के साथ विकास का ग्राफ कभी नीचे भी जाता है। लेखक का कहना है कि इसे भी तो विकास ही कहा जाएगा ।लेखक ने आलोचना के पुराने स्थापित मानदंडों को स्वीकार न करते हुए बहुत-सी स्थापित पुस्तकों को विस्थापित किया है। वहीं बहुत-सी विस्थापित पुस्तकों का पुनर्मूल्यांकन कर उन्हें उनका उचित स्थान दिलाया है।पुस्तक में ऐतिहासिक उपन्यासों और महिला लेखिकाओं के अलग-अलग अध्याय हैं। क्योंकि जहाँ ऐतिहासिक उपन्यास प्राय: इतिहास की समकालीनता सिद्ध करते हैं, वहीं महिला लेखिकाओं का जीवन की समस्याओं और सवालों को देखने तथा उनसे जूझने का नज़रिया पुरुष लेखकों से भिन्न दिखलाई पड़ता है। समय बदल रहा है। बदल गया है। आज की महिला पहले की महिलाओं की तरह पुरुष की दासी नहीं है। वह जीवन में कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली आधुनिक महिला है। वह पीडि़त और प्रताडि़त है तो जुझारू, लड़ाकू और प्रतिरोधक जीवन शक्ति से संचारित भी है।

Price     Rs 280/-

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प्रख्यात आलोचक विजय मोहन ङ्क्षसह की पुस्तक 'आधुनिक हिन्दी गद्य साहित्य का विकास और विश्लेषण’में आधुनिकता को नए सिरे से परिभाषित और विश्लेषित करने की पहल है। काल विभाजन की पद्धति भी बदली, सटीक और बहुत वैज्ञानिक दिखलाई देगी। साहित्य के विकासात्मक विश्लेषण की भी लेखक की दृष्टि और पद्धति भिन्न है। इसीलिए हम इस पुस्तक को आलोचना की रचनात्मक प्रस्तुति कह सकते हैं। पुस्तक में आलोचना के विकास-क्रम को उसके ऊपर जाते ग्राफ से ही नहीं आंका गया है। युगपरिवर्तन के साथ विकास का ग्राफ कभी नीचे भी जाता है। लेखक का कहना है कि इसे भी तो विकास ही कहा जाएगा ।लेखक ने आलोचना के पुराने स्थापित मानदंडों को स्वीकार न करते हुए बहुत-सी स्थापित पुस्तकों को विस्थापित किया है। वहीं बहुत-सी विस्थापित पुस्तकों का पुनर्मूल्यांकन कर उन्हें उनका उचित स्थान दिलाया है।पुस्तक में ऐतिहासिक उपन्यासों और महिला लेखिकाओं के अलग-अलग अध्याय हैं। क्योंकि जहाँ ऐतिहासिक उपन्यास प्राय: इतिहास की समकालीनता सिद्ध करते हैं, वहीं महिला लेखिकाओं का जीवन की समस्याओं और सवालों को देखने तथा उनसे जूझने का नज़रिया पुरुष लेखकों से भिन्न दिखलाई पड़ता है। समय बदल रहा है। बदल गया है। आज की महिला पहले की महिलाओं की तरह पुरुष की दासी नहीं है। वह जीवन में कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली आधुनिक महिला है। वह पीडि़त और प्रताडि़त है तो जुझारू, लड़ाकू और प्रतिरोधक जीवन शक्ति से संचारित भी है।
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