Antasakara

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Antasakara

Number of Pages : 96
Published In : 2017
Available In : Hardbound
ISBN : 978-93-263-5554-4
Author: Bhagatsingh Soni

Overview

भगतङ्क्षसह सोनी उन कवियों में हैं जो बिना किसी शोरगुल, बड़बोलेपन और नारों से दूर छत्तीसगढ़ की स्थानिकता में अपनी कविता का ठौर-ठिकाना बनाये हुए हैं। अपने आस-पास के सजीव सन्दर्भों से उर्जा ग्रहण करते वे दुनिया को देखते हैं जिसमें अपनी धरती का इन्दराज है और सृष्टि के लिए चिन्ताएँ। पेड़-पौधों, नदी-पहाड़, आसमान और जनसामान्य के सरोकारों के रास्ते उनकी कविता समन्दर पार के मुद्दों पर विमर्श का सूक्ष्म पर्यावरण रचती है। पर्यावरण, जलसंकट, विस्थापन, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, बाज़ारवाद जैसे मुद्दों की तर-फ भी भगतङ्क्षसह सोनी की निगाह है किन्तु उनकी कविता स्थानिकता के मार्ग से आगे का रास्ता बनाती है। वे कहते हैं—'मैंने केवल। समुद्र के जल में। आसमान को उतरता देखा। जल के चादर में देखा। अपने चेहरे का पानी। रोता देखा खुद को यानी।’कहनी होगा यह रोता हुआ चेहरा उस सामान्य जन का है जिसे न अपना घर मिलता है, न अपना रोज़मर्रा का भोजन ठीक से न चाहा हुआ जीवन। मिलता है बस आजीवन संघर्ष। भगतङ्क्षसह सोनी की कविताओं में भरोसा है तो सामान्य जन में कवि में और कविता में। उनकी कवि और कविता सर्वहारा के पक्ष में अपने होने में कवि और मनुष्य को केन्द्र में देखते हैं। दुनिया को बचाने के लिए कवि परमाणु बमों के जखीरों की बढ़ते चुनौती की तरफ भी सावधान करता है, जो उनके सचेत मानस को उजागर करती है। भगतङ्क्षसह दरअसल उन कवियों में हैं जो कविताओं में आग बचाये रखने का काम अपनी स्थानिक पक्षधरता में चुपचाप कर रहे हैं। पाठकों को यह संग्रह पसन्द आएगा, ऐसी आशा है।

Price     Rs 160/-

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भगतङ्क्षसह सोनी उन कवियों में हैं जो बिना किसी शोरगुल, बड़बोलेपन और नारों से दूर छत्तीसगढ़ की स्थानिकता में अपनी कविता का ठौर-ठिकाना बनाये हुए हैं। अपने आस-पास के सजीव सन्दर्भों से उर्जा ग्रहण करते वे दुनिया को देखते हैं जिसमें अपनी धरती का इन्दराज है और सृष्टि के लिए चिन्ताएँ। पेड़-पौधों, नदी-पहाड़, आसमान और जनसामान्य के सरोकारों के रास्ते उनकी कविता समन्दर पार के मुद्दों पर विमर्श का सूक्ष्म पर्यावरण रचती है। पर्यावरण, जलसंकट, विस्थापन, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, बाज़ारवाद जैसे मुद्दों की तर-फ भी भगतङ्क्षसह सोनी की निगाह है किन्तु उनकी कविता स्थानिकता के मार्ग से आगे का रास्ता बनाती है। वे कहते हैं—'मैंने केवल। समुद्र के जल में। आसमान को उतरता देखा। जल के चादर में देखा। अपने चेहरे का पानी। रोता देखा खुद को यानी।’कहनी होगा यह रोता हुआ चेहरा उस सामान्य जन का है जिसे न अपना घर मिलता है, न अपना रोज़मर्रा का भोजन ठीक से न चाहा हुआ जीवन। मिलता है बस आजीवन संघर्ष। भगतङ्क्षसह सोनी की कविताओं में भरोसा है तो सामान्य जन में कवि में और कविता में। उनकी कवि और कविता सर्वहारा के पक्ष में अपने होने में कवि और मनुष्य को केन्द्र में देखते हैं। दुनिया को बचाने के लिए कवि परमाणु बमों के जखीरों की बढ़ते चुनौती की तरफ भी सावधान करता है, जो उनके सचेत मानस को उजागर करती है। भगतङ्क्षसह दरअसल उन कवियों में हैं जो कविताओं में आग बचाये रखने का काम अपनी स्थानिक पक्षधरता में चुपचाप कर रहे हैं। पाठकों को यह संग्रह पसन्द आएगा, ऐसी आशा है।
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