Buddha Muskuraye

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Buddha Muskuraye

Number of Pages : 160
Published In : 2011
Available In : Hardbound
ISBN : 9788126330133
Author: Yash Malviya

Overview

"बुद्ध मुस्कुराये 'बुद्ध मुस्कुराये’यश मालवीय का नवीनतम गीत-संग्रह है। यश के गीतों में एक भावुक मन है, पर उसे अपनी भावुकता पर न लजाने की ज़रूरत है न पछताने की। यश जानते हैं कि भावुकता किस प्रकार एक सक्रिय संवेदनशीलता का पर्याय बनकर अपने समय के यथार्थ से सीधी मुठभेड़ का बीड़ा उठा सकती है। यह भावुकता सि$र्फ 'कातर टेर’नहीं है। 'कातर टेर’का हश्र कवि को पता है— 'समीकरणों में उलझकर सृष्टि के/ एक कातर टेर उगकर टूट जाती है!’भावुकता एक 'प्रतिवाद’की भूमिका में क्रियात्मक रूप ले, यह कवि को अभीष्ट है, इसीलिए उसके एक गीत में 'गाय’का अपने दुधमँुहे को याद करना 'प्रतिवाद करना’भी बन जाता है। 'गाय’यहाँ न तो निरी असहायता का बिम्ब है, जैसा कि प्राय: रहा है और न ही वैसा साम्प्रदायिक बिम्ब है जिसका प्राय: राजनीतिक उपयोग होता है। यश के गीतों में उनकी अनुभूति के वैयक्तिक और सामाजिक, दोनों आयाम परस्पर एक सन्तुलन बरकरार रखते हैं। 'अतिरिक्त’या 'प्रदर्शनात्मक’रूप में सामाजिक होने की विडम्बना यश पहचानते हैं। अनुभूति को उसकी वैयक्तिकता में सहेजना यश के गीतों में इसलिए सार्थक है कि सहज होकर सामाजिक होने की राह उसमें दीखती है, जो उनके गीतों को विशिष्ट बनाती है। "

Price     Rs 160/-

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"बुद्ध मुस्कुराये 'बुद्ध मुस्कुराये’यश मालवीय का नवीनतम गीत-संग्रह है। यश के गीतों में एक भावुक मन है, पर उसे अपनी भावुकता पर न लजाने की ज़रूरत है न पछताने की। यश जानते हैं कि भावुकता किस प्रकार एक सक्रिय संवेदनशीलता का पर्याय बनकर अपने समय के यथार्थ से सीधी मुठभेड़ का बीड़ा उठा सकती है। यह भावुकता सि$र्फ 'कातर टेर’नहीं है। 'कातर टेर’का हश्र कवि को पता है— 'समीकरणों में उलझकर सृष्टि के/ एक कातर टेर उगकर टूट जाती है!’भावुकता एक 'प्रतिवाद’की भूमिका में क्रियात्मक रूप ले, यह कवि को अभीष्ट है, इसीलिए उसके एक गीत में 'गाय’का अपने दुधमँुहे को याद करना 'प्रतिवाद करना’भी बन जाता है। 'गाय’यहाँ न तो निरी असहायता का बिम्ब है, जैसा कि प्राय: रहा है और न ही वैसा साम्प्रदायिक बिम्ब है जिसका प्राय: राजनीतिक उपयोग होता है। यश के गीतों में उनकी अनुभूति के वैयक्तिक और सामाजिक, दोनों आयाम परस्पर एक सन्तुलन बरकरार रखते हैं। 'अतिरिक्त’या 'प्रदर्शनात्मक’रूप में सामाजिक होने की विडम्बना यश पहचानते हैं। अनुभूति को उसकी वैयक्तिकता में सहेजना यश के गीतों में इसलिए सार्थक है कि सहज होकर सामाजिक होने की राह उसमें दीखती है, जो उनके गीतों को विशिष्ट बनाती है। "
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