Prem Gilhari Dil Akhrot

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Prem Gilhari Dil Akhrot

Number of Pages : 128
Published In : 2015
Available In : Hardbound
ISBN : 9789326354141
Author: Baabusha Kohli

Overview

"प्रेम गिलहरी दिल अखरोट आधुनिक समय और संवेदना के इस दौर में हमारी इन्द्रियाँ हमेशा कुछ नया जानना और पाना चाहती हैं। अनुभव की अगाध गहराई में पहुँचकर हर शब्द हमारे लिए एक नयी प्रतीति की आमद बन जाता है। हिन्दी के वैविध्यपूर्ण संसार में यों तो कवियों की असंख्य तादाद है, पर कुछ ऐसे कवि अवश्य हैं जो कविता का एक नया रूपाकार गढ़ रहे हैं। बाबुषा कोहली ऐसी ही कवयित्री हैं जिनकी कविताओं में नयी प्रतीतियों, नये साँचे, नये भाव-बोध, नयी बिम्ब-रचना, अनुभूति, कथ्य और संवेदना की ताज़गी है जो इधर के युवा कवियों में बहुत कम दीख पड़ती है। 'प्रेम गिलहरी दिल अखरोट’की कविताएँ प्रेम के धागे से बुनी हुई लगती हैं किन्तु इनमें जीवन की विविधताओं का संगीत गूँजता है, एक ऐसी सिम्फनी गूँजती है जो सुख से आह्लादित और दुख से विगलित कर देती है। ये कविताएँ सीधी-सपाट और सरल कहे जाने के अभ्यस्त जुमलों और कविताई की किसी भी प्रविधि के संक्रमण से बचना चाहती हैं। उपसर्ग और प्रत्ययों की तरह सात फेरे लेने का अनुरोध करती हुई कवयित्री पुरुष सत्ता को किसी समानार्थी शब्द की तरह जीवन भर सहेजती हुई स्त्री-विमर्श को नये स्वर देती है। कहना न होगा कि ये कविताएँ माथे पर रखी ठंडी पटिï्टयों की मानिन्द हैं जो उस पर मुटï्ठी भर चाँंद की धुन लीपती हैं और उसकी तपन बुहारती हैं। सान्द्रता, अनुभव की सघनता, भाषाई नवीनता और बाँकपन के गुणसूत्रों से सम्पृक्त बाबुषा कोहली के यहाँ निश्चय ही कविता का एक ऐसा संसार खुलता हुआ दिखाई देगा जो युवा कवयित्रियों में अभी तक अलक्षित रहा है। —ओम निश्चल "

Price     Rs 180/-

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"प्रेम गिलहरी दिल अखरोट आधुनिक समय और संवेदना के इस दौर में हमारी इन्द्रियाँ हमेशा कुछ नया जानना और पाना चाहती हैं। अनुभव की अगाध गहराई में पहुँचकर हर शब्द हमारे लिए एक नयी प्रतीति की आमद बन जाता है। हिन्दी के वैविध्यपूर्ण संसार में यों तो कवियों की असंख्य तादाद है, पर कुछ ऐसे कवि अवश्य हैं जो कविता का एक नया रूपाकार गढ़ रहे हैं। बाबुषा कोहली ऐसी ही कवयित्री हैं जिनकी कविताओं में नयी प्रतीतियों, नये साँचे, नये भाव-बोध, नयी बिम्ब-रचना, अनुभूति, कथ्य और संवेदना की ताज़गी है जो इधर के युवा कवियों में बहुत कम दीख पड़ती है। 'प्रेम गिलहरी दिल अखरोट’की कविताएँ प्रेम के धागे से बुनी हुई लगती हैं किन्तु इनमें जीवन की विविधताओं का संगीत गूँजता है, एक ऐसी सिम्फनी गूँजती है जो सुख से आह्लादित और दुख से विगलित कर देती है। ये कविताएँ सीधी-सपाट और सरल कहे जाने के अभ्यस्त जुमलों और कविताई की किसी भी प्रविधि के संक्रमण से बचना चाहती हैं। उपसर्ग और प्रत्ययों की तरह सात फेरे लेने का अनुरोध करती हुई कवयित्री पुरुष सत्ता को किसी समानार्थी शब्द की तरह जीवन भर सहेजती हुई स्त्री-विमर्श को नये स्वर देती है। कहना न होगा कि ये कविताएँ माथे पर रखी ठंडी पटिï्टयों की मानिन्द हैं जो उस पर मुटï्ठी भर चाँंद की धुन लीपती हैं और उसकी तपन बुहारती हैं। सान्द्रता, अनुभव की सघनता, भाषाई नवीनता और बाँकपन के गुणसूत्रों से सम्पृक्त बाबुषा कोहली के यहाँ निश्चय ही कविता का एक ऐसा संसार खुलता हुआ दिखाई देगा जो युवा कवयित्रियों में अभी तक अलक्षित रहा है। —ओम निश्चल "
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